हरियाणा की विभिन्न सभ्यता: सीसवाल एवं हाकड़ा सभ्यता

सीसवाल संस्कृति

  • हरियाणा के हिसार जिले के सीसवाल नामक स्थान पर सर्वप्रथम खुदाई होने के कारण इसे सीसवाल सभ्यता नाम दिया गया है।
  • पुरातत्त्ववेत्ताओं का मानना है कि लगभग 2500 ई. पू. में राजस्थान की ओर से कुछ कृषक लोग दृष्वती नदी घाटी में आकर बस गए तथा वहाँ कृषि कार्य करने लगे, जिस कारण हरियाणा में सीसवाल संस्कृति का उदय हुआ।
  • कृषि की प्रमुखता के कारण इस संस्कृति को कृषक संस्कृति (सभ्यता) भी कहा जाता है।
  • हरियाणा में इस संस्कृति के अन्तर्गत कुल 29 स्थान आते हैं, जिन्हें तीन स्तरों में बाँटा गया है – पुरासीसवालीय बस्तियाँ, मध्य सीसवालीय बस्तियाँ तथा अन्तिम सीसवालीय बस्तियाँ।
  • हरियाणा में कुल 13 पुरासीसवालीय बस्तियाँ हैं, जिनमें 9 दृष्वती नदी की घाटी में, 2 सरस्वती नदी की घाटी में तथा 2 यमुना नदी की घाटी में हैं।
  •  मध्य सीसवालीय बस्तियों की कुल संख्या 20 है, जिनमें 12 दृष्वती नदी की घाटी में, 5 यमुना नदी की घाटी में, 2 घग्घर नदी की घाटी में तथा 1 सरस्वती नदी की घाटी में है।
  • अन्तिम सीसवालीय बस्तियों की कुल संख्या 28 (सर्वाधिक ) है, जिनमें 11 साहबी नदी की घाटी में, 10 दृष्वती नदी की घाटी में 6 यमुना नदी की घाटी में तथा 1 सरस्वती नदी की घाटी में है।
  • सीसवालीय लोग सर्वप्रथम दृष्वती नदी की घाटी में आकर बसे । हरियाणा के महेन्द्रगढ़ में भी सीसवालीय बस्तियों का पता लगा है।

सीसवाल संस्कृति के महत्त्वपूर्ण स्थलों का विवरण 

सीसवाल

  • यह हिसार जिले की पश्चिम दिशा में चौतांग नदी के किनारे पर अवस्थित एक गाँव है। वर्ष 1968 में पुरातत्त्वविदों के सतही अन्वेषण के फलस्वरूप कुछ अवशेष मिले तथा वर्ष 1970 में पंजाब विश्वविद्यालय के तत्वाधान में डॉ. सूरजभान ने इस स्थल की पुरातात्विक खुदाई करवाई।
  • सीसवाल के टीले से मिलने वाली वस्तुएँ हैं-हाथ से बने मृद्भाण्ड, मिट्टी की चित्रित चूड़ियाँ, मनका, ताँबे के हत्थे वाला गंडासा पत्थर के उपकरण आदि । सीसवाल से जो बर्तन/मृद्भाण्ड मिले हैं, उन पर सफेद व काला पोत किया हुआ है। कुछ बर्तन / मृद्भाण्ड स्लेटी रंग के भी हैं।

मिताथल

  • यह हरियाणा के भिवानी जिले में अवस्थित है। मिताथल से गुप्तकालीन सिक्के वर्ष 1915-16 में प्राप्त हुए थे।
  • वर्ष 1968 में पंजाब विश्वविद्यालय के डॉ. सूरजभान के नेतृत्व में इस स्थल का विधिवत् उत्खनन प्रारम्भ हुआ। मिताथल का टीला लगभग दो भागों में बँटा हुआ है, जिनकी ऊँचाई 4-5 मीटर के आस-पास है। यहाँ से धूप में सुखाई हुई कच्ची ईंटों के मकान मिले हैं। इन मकानों की छत छप्परनुमा होती थी ।
  • यहाँ से चाक पर बने और आग में पके मृद्भाण्ड मिले हैं। इसके अतिरिक्त मिट्टी की बनी चूड़ियाँ, फियांस की हरी चूड़ियाँ, पत्थर की गेंद, पत्थर का मैलखोरा, ताँबे की चूड़ियाँ और हाथी दाँत की पिन आदि मिले हैं। यहाँ से कुछ बर्तन स्लेटी रंग के भी प्राप्त हुए हैं।
  • मिताथल से जो कच्ची ईंटें मिली हैं, उनका आकार 30 x 20 x 10 cm है।

बनावली

  • यह हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित एक छोटा सा गाँव है।
  • बनावली की प्राचीनता का पता सर्वप्रथम वर्ष 1965 में चला तथा वर्ष 1974 में हरियाणा सरकार के पुरातत्त्व विभाग के नेतृत्व में बनावली में विधिवत उत्खनन प्रारम्भ हुआ।
  • इस स्थल के घर मिट्टी की कच्ची ईंटों से बने होते थे, यद्यपि कहीं-कहीं 1: 2: 3 अनुपात की पक्की ईंटें भी मिली हैं। यहाँ के सीसवालीयवासी ताँबे और काँसे का भी प्रयोग करते थे, साथ ही यहाँ सोने का भी प्रचलन था।
  • बनावली से मिलने वाली अन्य वस्तुएँ हैं-गोल आकार का चूल्हा और एक भट्ठी, मृद्भाण्ड, दुर्लभ पत्थरों के जेवर, रसोई के बर्तन, कुण्डे, बच्चों के खिलौने ( छतरीदार गाड़ी) आदि ।

राखीगढ़ी

  • राखीगढ़ी या राखी शाहपुर हिसार जिले की हाँसी तहसील का एक प्रसिद्ध गाँव है।
  • पुरातत्त्ववेत्ताओं का राखीगढ़ी की प्राचीनता की तरफ ध्यान सर्वप्रथम वर्ष 1964 में गया। इस क्षेत्र में उत्खनन से सीसवालीय लोगों की संस्कृति के बारे में जानकारी मिलती है।
  • पुरातात्विक खुदाई के द्वारा इस क्षेत्र से मिलनी वाली महत्त्वपूर्ण वस्तुएँ हैं— मृद्भाण्ड, चित्रित चूड़ियाँ, कई प्रकार की मृत्यमणियाँ। यहाँ के कुछ मृद्भाण्ड स्लेटी रंग के हैं।

बालू

  •  यह हरियाणा के जीन्द जिले में अवस्थित एक गाँव है। इस स्थल की खुदाई वर्ष 1978-79 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा कराई गई।
  •  यहाँ से मिलने वाली वस्तुएँ कच्ची ईंटों के मकान के अवशेष, लाल, पांडु और स्लेटी रंग के चाक से बने मृद्भाण्ड, मिट्टी के मनके, चूड़ियाँ, गेंद तथा दुर्लभ पत्थर के मनके आदि हैं।
  •  इसके अतिरिक्त मिट्टी की बनी पशुओं की मूर्तियाँ, चूड़ियाँ, खिलौने, गाड़ी, गेंद, हड्डियों के सूए, सिलबट्टे, फियांस की चूड़ियाँ, ताँबे के उपकरण आदि भी मिले हैं।

फरमाणा

  • यह हरियाणा के रोहतक जिले में अवस्थित एक छोटा-सा गाँव है।
  • वर्ष 2007-09 के दौरान इस स्थल की खुदाई की गई तथा यह स्थान सीसवाल संस्कृति के प्रथम चरण से सम्बद्ध है।
  • यहाँ से 2-3 मीटर के कुछ गड्ढे मिले हैं तथा इन गड्ढों में चूल्हे भी बने हैं अर्थात् इन गड्ढों का प्रयोग रसोई के रूप में किया जाता था।
  • इस स्थल से लाल रंग से बने और काले रंग से चित्रित मृद्भाण्ड मिले हैं।

कुणाल

  • हरियाणा के फतेहाबाद जिले की रतिया तहसील में स्थित है। यह स्थल सरस्वती नदी के दाएँ तट पर स्थित है। कुणाल से सीसवाल संस्कृति के छोटे-बड़े अनेक गड्ढे और मृद्भाण्ड मिले हैं।
  • इस स्थान से ही राजसी मुकुट भी प्राप्त हुए हैं। साथ ही सोने व चाँदी के आभूषण प्राप्त हुए हैं।
  • गिरावड़
  • हरियाणा के रोहतक जिले में अवस्थित गिरावड़ की खुदाई वर्ष 2007 में प्रारम्भ हुई तथा उत्खनन के दौरान 13 गड्ढे, 2 भट्ठियाँ और काफी कम मात्रा में मृद्भाण्ड मिले हैं। यहाँ से मृद्भाण्ड पकाने की दो भट्ठियाँ भी प्राप्त हुई हैं।

भिरड़ाना

  •  यह स्थल भी हरियाणा के फतेहाबाद जिले में है, जहाँ पर सीसवाल संस्कृतिकालीन ऊँचे टीले की 2003-05 के दौरान खुदाई की गई।
  • यहाँ से फरमाणा और गिरावड़ के समान अन्दर से लिपाई किए हुए गड्ढे तथा लाल व स्लेटी रंग के मृद्भाण्ड मिले हैं।

सीसवाल संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ

  •  यह संस्कृति कृषि प्रधान थी तथा परवर्ती संस्कृतियों की तुलना में काफी उन्नत थी। पशुपालन का विधिवत् प्रारम्भ इसी समय हुआ। गाय, बैल, बकरी, कुत्ता, सूअर आदि प्रमुख पालतू पशु थे। 
  • पशुपालन के कारण दूध का प्रचलन भी इस संस्कृति के समय प्रारम्भ हुआ तथा यहाँ के लोग खाल, ऊन और रुई के वस्त्र आदि बनाने की कला में निपुण हो गए। इस काल में गिरोह, परिवार व अन्य कई सामाजिक संस्थान काफी प्रचलित हो गए।
  • इस काल में सम्भवतः विवाह का भी प्रचलन आरम्भ हो गया था। सम्भवतः इस काल में धर्म, देवी-देवताओं का निर्माण होने लगा। इस संस्कृति के लोग जिस नगरीय सभ्यता की ओर अग्रसर हो रहे थे तब इनका सम्बन्ध सिन्धु सभ्यता से जुड़ा और 2300 ई. पू. इस संस्कृति में भी नगरीय सभ्यता का विस्तार हुआ।

हरियाणा में सीसवाल संस्कृति से सम्बन्धित स्थल

जिला स्थल
हिसार सीसवाल, सलीमगढ़, शाहपुर, पाटन, सातरोड़ खुर्द, अलीपुर, खरड़, सिसाय, डाटा, पाली, राखीगढ़ी, पाली, सिंधवा
सिरसा / फतेहाबाद तलावाड़ा, बनी, रताटिब्बा, चींमू, राणियाँ।
भिवानी मानहेंडु, दादरी, चाँग, तिगड़ाना।
गुरुग्राम मुंकोला, अल्दुका, सुल्तानपुर, मुंडेहेरा, पापड़ा लुहिंगा, गोकलपुर, ममलिका।
रेवाड़ी बादली, बाघसा, लोहाट
कैथल मोह, चेहा, रितौली, पुण्डरी, कलायत, जठेड़ी।
जीन्द नरवाना, बरसाना, खोखरी ।
करनाल कुंजपुरा, निसंग, ढाचर, बहोला ।

 

हाकड़ा संस्कृति

  • हरियाणा में हाकड़ा संस्कृति का कालक्रम हड़प्पा सभ्यता से भी पूर्व का माना जाता है। यह मुख्यतः कृषि समुदाय के विकास को प्रस्तुत करती है। 
  • हाकड़ा संस्कृति को आरम्भिक कृषक संस्कृति भी कहा जाता है।
  • इस संस्कृति के साक्ष्य हाकड़ा (घग्घर नदी के बहाव क्षेत्र से मिलने के कारण इसे हाकड़ा संस्कृति कहा जाता है।
  • हरियाणा में हाकड़ा संस्कृति के साक्ष्य सर्वप्रथम कुणाल नामक पुरास्थल से प्राप्त हुए हैं।
HSSC CET ADMIT CARD जिला परिचय : सिरसा | हरियाणा GK जिला परिचय : हिसार