1857 की क्रान्ति में रियासतों की भूमिका
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1857 की क्रान्ति में रियासतों की भूमिका
सन् 1857 की क्रान्ति के असफल होने में सभी रियासतों का सहयोग न मिलना तथा शस्त्रों के अभाव के साथ-साथ अकुशल नेतृत्व को कारण माना जा सकता है।
क्रान्ति के समय हरियाणा में मुख्यतः दो प्रकार की रियासतें थीं-
(i) विद्रोह समर्थक रियासतें
(ii) अंग्रेज समर्थक रियासतें
विद्रोह समर्थक रियासतें
रियासत का नाम | नेतृत्वकर्ता |
झज्जर | नवाब अब्दुर्रहमान |
बल्लभगढ़ | राजा नाहर सिंह |
फर्रुखनगर | नवाब अहमद अली गुलाम खाँ |
बहादुरगढ़ | नवाब बहादुर जंग |
मेवात | नवाब सद्रुद्दीन मेवाती |
रेवाड़ी | राव तुलाराम एवं राव गोपाल देव |
हाँसी | लाल हुकम चन्द जैन एवं मुनीद बेग |
रोहतक / खरखौदा | रिसालदार बिसारत खाँ |
पानीपत | मौलवी इमाम अली कलन्दर |
हिसार | शहजादा मुहम्मद आजम |
संक्षिप्त विवरण
झज्जर
- झज्जर की रियासत 1857 ई. तक लगभग 1230 वर्ग मील तक फैली हुई थी। यह सबसे बड़ी रियासत थी।
- 1845 ई. से इस रियासत पर अब्दुर्रहमान खान का अधिकार था। 1857 ई. की क्रान्ति के पश्चात् अब्दुर्रहमान पर मुकदमा चलाया गया, जहाँ 23 दिसम्बर, 1857 को दिल्ली के लाल किले पर उन्हें फाँसी दे दी गई।
- झज्जर रियासत के दक्षिण क्षेत्र बावल, कांटी व कनीना का क्षेत्र नाभा के राजा को दे दिए तथा झज्जर रियासत का ही नारनौल क्षेत्र पटियाला के राजा को दे दिया।
बल्लभगढ़
- बल्लभगढ़ की रियासत 1857 ई. तक लगभग 190 वर्ग मील तक फैली हुई थी।
- बल्लभगढ़ रियासत के एक तरफ यमुना नदी और दक्षिण की तरफ मेवात था।
- इस रियासत की शेष सीमा अंग्रेजी राज्य से संलग्न थी।
- 1857 ई. की क्रान्ति के समय यहाँ का शासक नाहर सिंह था।
- 1857 ई. की क्रान्ति के पश्चात् नाहर सिंह को 6 दिसम्बर, 1857 को गिरफ्तार कर लिया गया और दिल्ली के लाल किले में ले गए, जहाँ इन पर मुकदमा चलाया गया ।
- यहाँ विशेष न्यायालय द्वारा राजा नाहर सिंह को फाँसी की सजा सुनाई गई। नाहर सिंह को दिल्ली के चाँदनी चौक में 9 जनवरी, 1858 को फाँसी दे दी गई।
फर्रुखनगर
- फर्रुखनगर की रियासत 1857 ई. तक लगभग 22 वर्ग मील तक फैली हुई थी। यह एक छोटी रियासत थी।
- अहमद अली गुलाम खाँ 1857 ई. में फर्रुखनगर का शासक था।
- 1857 ई. की क्रान्ति के पश्चात् 22 अक्टूबर, 1857 को अहमद अली गुलाम को गिरफ्तार किया गया तथा दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चलाया गया।
- सैन्य आयोग के अध्यक्ष ब्रिगेडियर जनरल शावर्ज ने अहमद अली को फाँसी की सजा सुनाई।
- अहमद अली गुलाम को 23 जनवरी, 1858 को दिल्ली के चाँदनी चौक पर फाँसी दी गई।
बहादुरगढ़
- 1857 ई. तक बहादुरगढ़ हरियाणा क्षेत्र की सबसे छोटी (48 वर्ग मील) रियासत थी।
- बहादुरगढ़ का पुराना नाम सर्राफाबाद था।
- बहादुरगढ़ तथा दादरी का क्षेत्र इस रियासत के अन्तर्गत आता था ।
- नवाब बहादुर जंग 1857 ई. की क्रान्ति के समय यहाँ का शासक था।
- 1857 ई. की क्रान्ति के पश्चात् अंग्रेजों ने इन्हें लाहौर निर्वासित कर दिया, जहाँ इन्हें ₹ 1,000 वार्षिक पेंशन भी प्राप्त होती थी।
मेवात, रेवाड़ी एवं हाँसी
- 1857 ई. की क्रान्ति के समय मेवात रियासत के नवाब सदरुद्दीन मेवाती की रियासत पर अंग्रेजों द्वारा अधिकार कर लिया गया।
- राव तुलाराम, राव कृष्ण गोपाल तथा राव गोपाल देव ने 1857 ई. की क्रान्ति में रेवाड़ी का नेतृत्व किया था।
- 1857 ई. की क्रान्ति के समय हाँसी में क्रान्ति का नेतृत्व लाला हुकमचन्द ने किया था, जिन्हें क्रान्ति के बाद उन्हीं के घर के सामने फाँसी दे दी गई।
अंग्रेज समर्थक रियासतें
रियासत का नाम | समर्थक |
जीन्द | सरूप सिंह |
छछरौली | शोभासिंह |
लोहारू | नवाब अमीनुद्दीन |
पटौदी | नवाब अकबर अली |
सांपला | मिर्जा इलाहीबख्श |
संक्षिप्त विवरण
जीन्द
- जीन्द रियासत की स्थापना 1763 ई. में फुलकियाँ मिसल के संस्थापक फूल सिंह के पौत्र गजपत सिंह ने की थी।
- यह रियासत 376 वर्ग मील में फैली हुई थी। यह रियासत हरियाणा व पंजाब दोनों राज्यों में फैली हुई थी।
- 1857 ई. की क्रान्ति के समय यह रियासत हरियाणा की सबसे प्रमुख रियासत थी।
- गजपत सिंह ने जीन्द में एक विशाल दुर्ग का निर्माण करवाया था। महाराजा रणजीत सिंह गजपत सिंह की बहन के पुत्र थे।
- गजपत सिंह व रणजीत सिंह के बाद भागसिंह जीन्द रियासत का राजा बना। द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के दौरान भागसिंह ने अंग्रेजों की सहायता की थी।
- भागसिंह के बाद उसका उत्तराधिकारी प्रताप सिंह बना, जो अंग्रेजों का विरोधी था। 1814 ई. में प्रताप सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। अंग्रेजों ने रणजीत सिंह की सहायता से उसे गिरफ्तार कर लिया।
- 1816 ई. में कारावास में ही उसकी मृत्यु हो गई। प्रताप सिंह के पश्चात् फतेह सिंह और संगत सिंह शासक बने।
- संगत सिंह की युवावस्था में ही मृत्यु हो गई। इसके बाद 1834 ई. में सरूप सिंह जीन्द रियासत का राजा बना, जो अंग्रेजों का समर्थक था।
- 1857 ई. की क्रान्ति के समय यहाँ का शासक सरूप सिंह था।
- इस क्रान्ति के पश्चात् राजा सरूप सिंह को दादरी का क्षेत्र इनाम के रूप में दिया गया।
- संगरूर व कुरलाना को जीन्द रियासत में सम्मिलित कर लिया गया।
लोहारू
- 1827 ई. में लोहारु रियासत की स्थापना हरियाणा के हिसार जिले में की गई थी।
- यह रियासत राजपूताना की बीकानेर व जयपुर रियासत के मध्य स्थित थी। यह रियासत 225 वर्ग मील में विस्तृत थी।
- अंग्रेजों के विश्वासपात्र सैन्य सरदार अहमद बख्श खान का सबसे बड़ा बेटा समसुद्दीन खान लोहारु का शासक बना, परन्तु 1835 ई. में दिल्ली के रेजीडेण्ट विलियम फ्रेजर की हत्या के आरोप में अंग्रेजों ने समसुद्दीन को फाँसी की सजा दे दी, साथ ही फिरोजपुर झिरका का क्षेत्र भी छीन लिया।
- समसुद्दीन खान के पश्चात् उसका भाई अमीनुद्दीन अहमद खान ने रियासत की बागडोर संभाली।
- प्रसिद्ध शायर मिर्जा गालिब, नवाब अमीनुद्दीन अहमद खाँ के दामाद थे। इस रियासत के शासक अलाउद्दीन अहमद खाँ को सर्वप्रथम नवाब की उपाधि प्रदान की गई थी।
- 1857 ई. की क्रान्ति के समय यहाँ का शासक अमीनुद्दीन था। इसने क्रान्ति के प्रारम्भ होने पर अंग्रेजों से पत्राचार शुरू कर दिया था।
छछरौली (कलसिया)
- यह रियासत वर्तमान हरियाणा के उत्तरी क्षेत्र में यमुना नदी के पास स्थित थी।
- 1857 ई. की क्रान्ति के समय इस रियासत का शासक शोभा सिंह था।
- इसने जगाधरी के साहूकार से ऋण लेकर अंग्रेजों को दिया था।
- शोभासिंह के पुत्र लहना सिंह ने अंग्रेजों के साथ मिलकर अनेक अभियानों का संचालन किया था।
पटौदी
- 1803 ई. में द्वितीय आंग्ल मराठा युद्धोपरान्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 1804 ई. में फैज तलब खाँ को युद्ध में सहायता देने के बदले में 40 गाँव और पटौदी कस्बा पुरस्कारस्वरूप दिया।
- इसी कस्बे में 1805 ई. में फैज तलब खाँ ने पटौदी रियासत की नींव रखी थी।
- यह रियासत रोहतक व गुरुग्राम जिले के मध्य 75 वर्ग मील में फैली हुई थी।
- मुगल शासनकाल के समय पटौदी, रेवाड़ी सरकार के अन्तर्गत एक परगना था।
- फैज तलब खाँ (1804-29 ई.) ने 1805 ई. में नवाब की उपाधि धारण की।
- 1857 ई. की क्रान्ति के समय यहाँ का नवाब अकबर अली था।
- अकबर अली को जटौली और शेरपुर गाँव अतिरिक्त दिए गए थे।
दुजाना
- हरियाणा के झज्जर जिले में स्थित दुजाना रियासत की नींव 1806 ई. में अब्दुल समद खाँ नामक युसुफजई पठान ने रखी थी।
- यह बेरी (झज्जर) से लगभग 6 किमी दूर एक गाँव है। यह रियासत 100 वर्ग मील में फैली हुई थी।
- यहाँ के शासक द्वारा 1803 व 1805 ई. में अंग्रेजों की सहायता करने के कारण यह रियासत बन गई थी।
- अब्दुल समद मराठा सरदार बाजीराव पेशवा के रिसालदार के रूप में सेवाएँ प्रदान कर चुका था।
- अब्दुल समद ने सिन्धिया-अंग्रेजों के संघर्ष के दौरान अंग्रेजो का साथ दिया, जिसके परिणामस्वरूप उसे 24 गाँवों की जागीर दी गई थी। इन्हीं 24 गाँवों को संगठित कर उसने रियासत बना ली।
- 1806 ई. में अब्दुल समद अपनी रियासत का पहला शासक बना।
- 1825 ई. में अब्दुल समद के निधन के बाद मुहम्मद डूंडे खाँ गद्दी पर बैठा।
- 1857 ई. की क्रान्ति के समय यहाँ का शासक डूंडे खाँ था। डूंडे खाँ को रेवाड़ी के बेरली व चौकी गाँव इनाम के रूप में दिए गए थे।
करनाल
- अंग्रेजों ने 1847 ई. में करनाल के लगान को पुनः निर्धारित कर दिया।
- 1857 ई. की क्रान्ति के समय करनाल का शासक अहमद अली खाँ था।
- इसने अंग्रेजों को अपने सारे अधिकार दे दिए थे। करनाल अंग्रेजों की सुरक्षा की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान था ।
- अंग्रेजों ने अहमद अली को करनाल जिले का प्रशासन चलाने के लिए असिस्टेण्ट कमिश्नर बनाया था तथा इसके परिवार के सदस्यों का पेंशन दी जाती थी।
साँपला-असौधा
- यह रियासत रोहतक – बहादुरगढ़ के मध्य स्थित थी। इस रियासत का शासक मिर्जा इलाहीबख्श था।
- इसने 1857 ई. की क्रान्ति को असफल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- यह अंग्रेजों को क्रान्तिकारियों के कार्यों की सूचना देता था।
- इसने अंग्रेजों को बहादुरशाह जफर के हमायूँ के मकबरे में छिपे होने की सूचना दी थी।
कुंजपुरा
- यह करनाल से पूर्व दिशा की ओर यमुना नदी के ओर था। 1857 ई. की क्रान्ति के समय कुंजपुरा के नवाब ने अंग्रेजों का पूरी तरह से सहयोग किया था।
- इसे अंग्रेजों ने थानेसर व इसके आसपास का क्षेत्र दिया था। इसके अतिरिक्त यहाँ के नवाब को थानेसर- पेहोवा मार्ग का उत्तरदायित्व दिया गया।
पड़ोसी रियासतें
इन सभी रियासतों के अतिरिक्त कुछ पड़ोसी रियासतें भी थीं, जिन्होंने हरियाणा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन रियासतों के सहयोग से ही अंग्रेजों ने हरियाणा में अपना पुनः अधिकार स्थापित किया। 1857 ई. की क्रान्ति में इन रियासतों की भूमिका का वर्णन निम्न प्रकार है:
पटियाला
- यह रियासत उत्तरी हरियाणा में अधिक फैली हुई थी। इस रियासत के जीन्द रियासत से घनिष्ठ सम्बन्ध थे।
- इस रियासत को कैथल व अरनौली का भी समर्थन प्राप्त था। इस रियासत की सैनिक गतिविधियों से अंग्रेज अत्यधिक प्रसन्न थे।
- 1857 ई. के विद्रोह के दौरान पटियाला रियासत के शासकों ने अंग्रेजी हुकूमत को व्यापक सहायता प्रदान की थी, इसी सहायता के प्रदान करने के बदले में महेन्द्रगढ़ जिले का नारनौल क्षेत्र पुरस्कार के रूप में पटियाला नरेश को दे दिया गया।
नाभा
- यह रियासत पटियाला के समीप स्थित थी। 1857 ई. के विद्रोह के दौरान नाभा रियासत के सिख शासकों ने अंग्रेजों की सहायता की थी।
- इसके बदले में अंग्रेजों ने नाभा रियासत के सिख शासक को रेवाड़ी जिले का बावल क्षेत्र एवं महेन्द्रगढ़ जिले का कनीना एवं अटेली क्षेत्र को पुरस्कारस्वरूप दे दिया।
बीकानेर
- यह रियासत मुख्य रूप से पश्चिमी हरियाणा से संलग्न थी। इस क्षेत्र में क्रान्ति की शुरुआत मई के अन्तिम सप्ताह में हुई थी।
- इस रियासत की पश्चिमी हरियाणा की क्रान्ति के दमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
जयपुर
- इस रियासत की दक्षिणी हरियाणा में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
- 1857 ई. की क्रान्ति की शुरुआत में गुरुग्राम, मेवात व अहीरवाल में हुई घटनाओं के समय अंग्रेज अपनी सुरक्षा के लिए जयपुर रियासत में ही गए थे।
हरियाणा का आधुनिक इतिहास – Link