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महाभारत काल के बाद गणतंत्रीय व्यवस्था का उदय

महाभारत काल के बाद गणतंत्रीय व्यवस्था का उदय

  • महाभारत काल के पश्चात् राज्य में पाण्डव सत्ता कमजोर हो गई तथा जनता ने गणतान्त्रिक व्यवस्था स्थापित की। सम्भवतः इस गणतन्त्रीय राज्य का नेता चन्द्रगुप्त था। चन्द्रगुप्त अपने पराक्रम से नेपोलियन की तरह राजतन्त्रीय शासक बन गया और वर्तमान के हरियाणा सहित पंजाब एवं अन्य क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया।
  • हरियाणा में गणतन्त्रीय व्यवस्था के संस्थापक सम्भवतः मौर्य जन ही थे।

मौर्य वंश

  • हरियाणा प्रदेश 324 से 232 ई. पू. तक मौर्यो के अधीन रहा था। मौर्य काल में चन्द्रगुप्त मौर्य एक पराक्रमी राजा था।
  • 324 ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने पंजाब और हरियाणा का राजा बनने पर धीरे-धीरे अपनी शक्ति बढ़ाते हुए मगध के नन्द वंश के शासक धनानन्द को पराजित किया। चन्द्रगुप्त का उत्तराधिकारी बिन्दुसार तथा बिन्दुसार का उत्तराधिकारी उसका पुत्र अशोक हुआ।
  • मौर्य शासक अशोक के शासनकाल के 7 अभिलेख अम्बाला जिले के टोपरा नामक स्थान पर अंकित हैं।
  • हरियाणा के थानेसर में भी अशोक ने बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया था। थानेसर को अशोक का पैतृक राज्य भी कहा जाता है।
  • अशोक के उत्तराधिकारी अयोग्य सिद्ध हुए, जिस कारण मौर्य साम्राज्य का पतन होने लगा तथा हरियाणा की जनता ने धीरे-धीरे पुनः गणतंत्रीय व्यवस्था स्थापित कर दी।
  • कुरुक्षेत्र में पुरातात्विक खोज दर्शाती है कि हरियाणा मौर्य साम्राज्य का भाग था।
  • मौर्य वंश की शासन व्यवस्था के प्रमाण जगाधरी के निकट सुघ से प्राप्त उत्तरी चमकीले काले मृद्भाण्ड, थानेसर के स्तूप तथा हिसार व टोपरा से प्राप्त स्तम्भों आदि से मिलते हैं।

यौधेय गणराज्य

  • भारत का सबसे बड़ा गणराज्य यौधेय गणराज्य ही था, जिसका केन्द्र हरियाणा था।
  • यौधेय शब्द का उल्लेख लगभग 5वीं सदी ईसा पूर्व से मिलता है। महाभारत, पुराण, महाभाष्य आदि ग्रन्थों में यौधेय शब्द का उल्लेख है।
  • महाभारत के द्रोण पर्व के अनुसार यौधेय गण की स्थापना यौधेय ने की थी।
  • यौधेय गण के सिक्के सर्वप्रथम 19वीं शताब्दी में कनिंघम को हरियाणा क्षेत्र में मिले।
  • रोजर्स महोदय को हाँसी और खरखौदा से यौधेय गण के सिक्के मिले हैं।
  • हरियाणा के सोनीपत से भी यौधेय गण के सिक्के मिले हैं।
  • इसी प्रकार जीन्द के जैजैवती नामक स्थान से वर्ष 1938-39 में यौधेय सिक्कों का एक बड़ा ढेर मिला।
  • हरियाणा के हिसार, सिरसा, सोनीपत, रोहतक, गुरुग्राम, करनाल आदि जिलों से भी सिक्के मिले हैं, जिसमें वर्ष 1961 में रोहतक जिले से मिला सिक्का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।
  • हरियाणा पुरातत्त्व संग्रहालय झज्जर में यौधेय सिक्कों को सुरक्षित रखा गया है।
  • रोहतक के खोखराकोट के टकसाल से वर्ष 1936 में जीवाश्म वैज्ञानिक बीरबल साहनी को ऐसा ही मुद्रांक मिला था, जिससे यौधेय गणराज्य के सिक्के ढाले जाते थे।
  • बीरबल साहनी ने ‘दि टेक्निक ऑफ कास्टिंग क्वाइंस इन द ऐंशिएण्ट इण्डिया’ नामक पुस्तक में लिखा है कि “सारे संसार में जो टकसालों में मुद्राओं के बनाने की प्राचीन सामग्री प्राप्त हुई है, उन सब में रोहतक से प्राप्त सामग्री सर्वोत्तम, सबसे मूल्यवान और महत्त्वपूर्ण है। “
  • भिवानी के नौरंगाबाद से भी टकसाल मिले हैं, जहाँ से यौधेय गण के सिक्के व साँचे मिले हैं।
  • मौर्य साम्राज्य के विघटन के पश्चात् यौधेय गणराज्य के अन्तर्गत सम्पूर्ण हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व पंजाब के कुछ भाग शामिल हो गए। यौधेय गणराज्य में हरियाणा को बहुधान्य कहा जाता था।
  • ‘यौधेयानां बहुधान्यक’ मुद्रा मौर्य साम्राज्य के पतन के दौरान की है। इस पर मौर्यकालीन लिपि अंकित है।
  • यौधेय गणराज्य की राजधानी प्रकृतानाक नगर (नौरंगाबाद – बामला) थी, जबकि रोहतक तथा सिरसा किसी बड़े प्रशासनिक विभाग का मुख्यालय था।
  • यौधेय गणराज्य में कुषाण शासकों विम कड़फिस कनिष्क, हुविष्क और वासुदेव के सिक्के भी मिले हैं अर्थात् इस क्षेत्र में कुषाण शासन का अस्तित्व था ।
  • यौधेय और कुषाणों का संघर्ष विम कड़फिस के समय हुआ था। सम्भवतः विम कड़फिस पूरे यौधेय गणराज्य पर अधिकार नहीं कर सका, जबकि कनिष्क और हुविष्क का इस पर पूरा नियन्त्रण था।
  • यौधेयों ने कुषाण शासक वासुदेव के समय स्वयं को स्वतन्त्र कराया, साथ ही भारत को भी कुषाणों के चंगुल से आजाद कराया।
  • प्रसिद्ध विद्वान डॉ. अनन्त सदाशिव अल्तेकर का कहना है कि यौधेयों ने कुणिन्द, अर्जुनायन आदि गणराज्यों का संघ बनाकर कुषाणों को पराजित किया।
  • इस विजय को चिरस्थायी बनाने के लिए यौधेय ने विशेष प्रकार के सिक्के जारी किए जिन पर ‘यौधेय गणस्य जय’ (अर्थात् यौधेय ने शत्रु पर विजय प्राप्त की) लिखा था।
  • ‘यौधेयानां जयमन्त्र धराणाम्’ वाले सिक्के से भी इसकी पुष्टि होती है। 
  • अन्तिम कुषाण शासकों का सिक्का इस क्षेत्र में न मिलना, यह सिद्ध करता है कि यौधेयों ने स्वयं को कुषाण शासकों से मुक्त कर लिया था।

 

खोखराकोट

  • खोखराकोट, यौधेय गणराज्य का प्रसिद्ध शहर था। इसे यौधेय गणराज्य की राजधानी भी माना जाता है। वर्तमान में यह रोहतक जिले के समीप एक विशाल टीले के रूप में स्थित है। इस पुरातात्विक स्थल का उत्खनन कार्य पुरातत्त्व और संग्रहालय विभाग द्वारा महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक की सहायता से वर्ष 1988 से 1990 के मध्य कराया गया।
  • इस स्थल से सर्वप्रथम चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इसके बाद यह क्षेत्र सम्भवतः यौधेय, कुषाण एवं गुप्त शासकों के अधीन रहा होगा। इस स्थल से टेराकोटा के सिक्के, मुहरें आदि भी प्राप्त हुए हैं।

अग्रगण

  • हरियाणा का दूसरा प्रमुख गणराज्य अग्र गणराज्य था।
  • अग्रों से सम्बन्धित सर्वप्रथम 10 सिक्के मिले हैं, जिनमें 9 सिक्के बरवाला से रोजर्स को प्राप्त हुए, जो ब्रिटिश संग्रहालय में हैं, जबकि 1 सिक्का भारतीय संग्रहालय में है।
  • वर्ष 1938-39 में एच. एल. श्रीवास्तव को हिसार के अग्रोहा से 51 सिक्के प्राप्त हुए थे। अग्रों से सम्बन्धित कई सिक्के इसी क्षेत्र से मिले हैं।
  • अग्रों से सम्बन्धित सिक्के बरवाला से भी प्राप्त हुए हैं। सिक्कों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्राचीनकाल में अग्र जन का मुख्य केन्द्र अग्रोहा (हिसार) था। वर्ष 1979 में भी पुरातात्विक उत्खनन के दौरान अग्रोहा से कई ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त हुई थीं । अग्र गणराज्य की राजधानी अग्रोहा अथवा अग्रोदक थी।
  • प्राचीन अग्रोहा नगर की स्थापना अग्रवाल जन (अग्र) के आदि पुरुष महाराजा अग्रसेन ने की थी। यही कारण है कि वर्तमान में भारत का पूरा अग्रवाल समुदाय (वैश्य जाति) अग्रोहा को अपना उद्गम स्थान मानते हैं।
  • कालान्तर में कुषाण युद्ध के बाद अग्रों का विलय यौधेय गणराज्य में हो गया। इससे पूर्व सिकन्दर के आक्रमण के पश्चात अग्र गणराज्य मौर्य साम्राज्य के अधीन हो गए थे, फिर मौर्यों के पतन के बाद स्वतन्त्र हो गए थे।
  • अग्रगण भी यौधेयों के द्वारा बनाए गए संघ में शामिल थे, जिसने शासक वासुदेव को पराजित किया था।

अर्जुनायन गण

  • प्रसिद्ध विद्वान् डॉ. जायसवाल के अनुसार, लगभग 200 ई. पू. में अर्जुनायन गण का उदय हुआ ।
  • यह गण राजस्थान में स्थित था, जिसमें दक्षिणी हरियाणा के कुछ क्षेत्र ( महेन्द्रगढ़ का कुछ भाग ) शामिल थे।

कुणिन्द गण

  • कुणिन्द गणराज्य प्राचीन भारत का एक महत्त्वपूर्ण गणराज्य था । कुणिन्द गणराज्य का क्षेत्र हरियाणा में अम्बाला जिले के कुछ ऊपरी भाग में था ।
  • कुषाणों के विरुद्ध कुणिन्दों तथा यौधेयों ने एकसाथ युद्ध लड़ा। इसकी पुष्टि प्रसिद्ध विद्वान् डॉ. अल्तेकर ने यौधेय गण के सिक्के पर अंकित ‘द्धि’ शब्द के आधार पर की है।
  • कुणिन्द गणराज्य के सिक्के करनाल तथा जगाधरी के बूढ़िया से मिले हैं।
  • इस प्रकार कहा जा सकता है कि 500 ई. पू. से ही हरियाणा में गणतान्त्रिक व्यवस्था स्थापित हो गई थी।
  • यद्यपि यह कुछ समय के लिए मौर्य व कुषाण साम्राज्य के अधीन हो गया था, परन्तु इनसे स्वतन्त्रता प्राप्त होने पर इसमें पुन: गणराज्य व्यवस्था की स्थापना हो गई।

गुप्त काल

  • प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख से यह प्रमाणित होता है कि महान गुप्त शासक समुद्रगुप्त ने यौधेय गणराज्य को गुप्त साम्राज्य में मिला लिया था।
  • 5वीं सदी में गुप्त शासक स्कन्दगुप्त की मृत्यु के पश्चात् हरियाणा राज्य (नीलकण्ठ जनपद) पर पुष्यभूति नामक एक गुप्त सामन्त ने अधिकार कर लिया।
  • हरियाणा के बड़े भू-भाग का नीलकण्ठ जनपद नाम सम्भवत: नागवंश के श्रीकण्ठ नामक शासक के नाम पर पड़ा था।

पुष्यभूति (वर्द्धन ) वंश

  • पुष्यभूति वंश अथवा वर्द्धन वंश का संस्थापक पुष्यभूति था, जिसकी राजधानी थानेश्वर ( थानेसर ) थी।
  • पुष्यभूति ने स्थानेश्वर ( थानेश्वर ) मन्दिर का निर्माण कराया था तथा इसका पुनर्निर्माण मराठा सदाशिव राय ने कराया था। थानेश्वर को ‘मुगलों का द्वीप’ भी कहा जाता है।
  • पुष्यभूति ‘परममाहेश्वर’ पदवी से विभूषित किया गया था। पुष्यभूति वंश के अन्तर्गत हरियाणा के छः शासक हुए, जिनकी राजधानी स्थानेश्वर ( थानेश्वर ) रही।
  • इस वंश के प्रमुख शासकों का विवरण निम्न प्रकार है

नरवर्द्धन ( 505-525 ई.)

  • गुप्तकाल के पतन काल में नरवर्द्धन ने थानेसर प्रतिगण (परगने) में अपनी सत्ता स्थापित की। इस समय यह क्षेत्र श्रीकण्ठ जनपद का भाग था। नरवर्द्धन को अभिलेखों में महाराज कहा गया है।

राज्यवर्द्धन प्रथम (525-550 ई.)

  • यह सूर्य का उपासक (परमादिव्य भक्त ) था। इसकी पत्नी अथवा पटरानी का नाम अप्सरा देवी था। इसने ‘महाराज’ की उपाधि धारण की थी।

आदित्यवर्द्धन (550-580 ई.)

  • इसकी उपाधि केवल महाराज थी, किन्तु इसे परमदिव्य भक्त कहा गया है। आदित्यवर्द्धन का विवाह 565 ई. में मालवा के गुप्तवंशी शासक दामोदर गुप्त की पुत्री महासेन गुप्ता से हुआ था। दामोदर गुप्त (550-576 ई.) को मौखरी शासक राववर्मन (576-580 ई.) ने पराजित किया था।

प्रभाकरवर्द्धन (580-605 ई.)

  • आदित्यवर्द्धन के पश्चात् उसका पुत्र प्रभाकरवर्द्धन शासक बना। यह एक शक्तिशाली शासक था, जिसका राज्याभिषेक 580 ई. में हुआ था।
  • प्रभाकरवर्द्धन ने अपने पराक्रम से ‘महाराजाधिराज परम भट्टारक’ तथा ‘प्रतापशील’ की उपाधियाँ धारण की थीं। बाणभट्ट के अनुसार यह अनेक युद्धों का विजेता था ।
  • डॉ. आर एस त्रिपाठी के अनुसार, प्रभाकरवर्द्धन का राज्य उत्तर में पंजाब से लेकर दक्षिण के मरू प्रदेश (हरियाणा) तक फैला हुआ था।
  • प्रभाकरवर्द्धन ने हूण शासकों को पराजित कर लाट, मालव, सिन्ध तथा गन्धार जैसे राज्यों पर विजय प्राप्त की थी। यह वर्द्धन वंश की पूर्ण स्वतन्त्रता का जन्मदाता था।
  • प्रभाकरवर्द्धन ने मालव राज परवर्ती गुप्त नरेश महासेन गुप्त के पुत्रों कुमारगुप्त (18 वर्ष) तथा माधवगुप्त (कुमारगुप्त से छोटा) को राज्यवर्द्धन तथा हर्ष का अनुचर नियुक्त किया था। इसकी मृत्यु 605 ई. में हो गई थी।

राज्यवर्द्धन द्वितीय (605-606 ई.)

  • यह प्रभाकरवर्द्धन और महारानी यशोमती का ज्येष्ठ पुत्र था। इसने हूणों के साथ युद्ध लड़ा था।
  •  जब यह 6 वर्ष का था, तब यशोमती के भाई शीलादित्य ने अपने 8 वर्ष के पुत्र भण्डी को राज्यवर्द्धन तथा हर्षवर्द्धन के अनुचर के रूप में भेजा था।
  • राज्यवर्द्धन के समय कन्नौज में मौखरी वंश का शासक गृहवर्मा शासन करता था। गृहवर्मा के साथ राज्यवर्द्धन की बहन राज्यश्री का विवाह हुआ था। 606 ई. में कन्नौज नरेश देवगुप्त और गौड़राज शशांक ने धोखे से राज्यवर्द्धन द्वितीय का वध कर दिया।

हर्षवर्द्धन (606-647 ई.)

  • राज्यवर्द्धन की मृत्यु के पश्चात् 606 ई. में हर्षवर्द्धन वर्द्धन वंश का शासक बना।
  • हर्ष का विधिवत् राज्याभिषेक 612 ई. में हुआ, जब इसने राजपुत्र की उपाधि और शीलादित्य उपनाम धारण करके कन्नौज की गद्दी प्राप्त की थी। हर्षवर्द्धन ने 636 ई. में कन्नौज को वर्द्धन वंश की दूसरी राजधानी बनाया था।
  • हर्ष बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि था। इसने देवगुप्त तथा पंचगौड़ शासक शशांक को हराया था। इसने परम भट्टारक की उपाधि भी धारण की। राजा हर्षवर्द्धन ने नागानन्द नाटक की रचना की थी।
  • हर्षवर्द्धन का दरबारी कवि बाणभट्ट था, जिसने हर्षचरित में पुष्यभूति वंश की प्रशंसा की है। हर्षकाल में राज्य प्रान्तों में विभाजित था। प्रान्त को भूक्ति कहा जाता था तथा प्रशासन की छोटी इकाई गाँव थी।
  • चीनी यात्री ह्वेनसांग 629 ई. में हर्ष के काल में भारत आया था तथा यह 635 से 644 ई. तक थानेश्वर में ही रहा था। ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक सि-यू-सी में थानेश्वर ( कुरुक्षेत्र) का वर्णन किया है।
  • हर्ष ने अन्तिम आक्रमण पूर्वी तट पर गंजाम पर किया था, जिसे इसने पराजित कर थानेश्वर में मिला लिया।
  • हर्ष की मृत्यु 647 ई. में हुई थी। हर्ष की मृत्यु के पश्चात् हरियाणा क्षेत्र पर गुर्जर प्रतिहारों ने शासन किया।
  • हर्षकालीन ताम्र मुद्राएँ तथा इण्डो ग्रीक बैक्टिरियो के दिहरम हरियाणा के सोनीपत से प्राप्त हुए हैं।

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