सल्तनत काल में मेवातियों के विद्रोह

सल्तनत काल में मेवातियों के विद्रोह

  • आधुनिक हरियाणा के फरीदाबाद, गुडगांवा, महेंद्रगढ़ और राजस्थान का अलवर जिलों को मेवात क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र में रहने वाले लोग मेवाती कहलाते हैं।  
  •  दिल्ली के सल्तानों के समय में इन लोगों ने समय-समय पर प्रशासन की ज्यादतियों के खिलाफ विद्रोह किया और दिल्ली के सुल्तानों की नींद हराम रखी।
  • समकालीन लेखक मिनहास के अनुसार दिल्ली के तीसरे सुल्तान यानि नसीरूदीन महमुद के गद्दी पर बैठते ही मेवातियों ने अपने नेता मालवा के नेतत्व में विद्रोह कर दिया।
  •  सुल्तान ने विद्रोह को दबाने की कोशिश की लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका । मेवात का पैत क गांव युद्ध क्षेत्र बन गया। इसी समय हरियाणा के अन्य क्षेत्रों में भी विद्रोह हो गए। 
  • इन मेवातियों का साहस इतना बढ़ गया था कि इन्होंने प्रधान सेनापति के ऊंटो के कारवां पर हासी के नजदीक आक्रमण किया और उसके ऊंट तथा अन्य सामान लूटकर ले गए। 
  • इस समय नसीरूदीन इनका कुछ नहीं बिगाड़ सका क्योंकि उसकी सेनाएं सीमा पर हो रहे मंगोलों के आक्रमण के बचाव में लगी हुई थी।
  • जनवरी 1260 ई० में जब सुल्तान को इन आक्रमणों से फुर्सत मिली तो उसने उलूग खां (बलबन ) बलबन को मेवातियों पर आक्रमण करने के लिए भेजा। मिनहास इस आक्रमण का सुंदर व विस्तार से वर्णन करता है। 
  • उसके अनुसार बलबन ने अपने सैनिकों के बीच में घोषणा की कि जो सैनिक किसी मेवाती का सिर लेकर आएगा उसे चांदी का एक टकां तथा जिंदा पकड़कर लाएगा उसे दो टके दिए जाएंगे। 
  • यह आक्रमण लगभग 20 दिन चला। मेवाती बड़ी बहादुरी से लड़े लेकिन बलबन की सेना अधिक होने के कारण वे हार गए। मलुका और उसके 250 साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। 
  • नसीरूदीन इन विजय से बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने दिल्ली में होज-ए-रानी के स्थान पर 9 मार्च 1260 ई० को एक विशेष दरबार लगाया। बलबन तथा उसकी सेना के सरदारों को बहुमूल्य उपहार दिए गए। 
  • इसके दो दिन बाद 11 मार्च 1260 ई० को बंदियों को हाथियों के पैरों के नीचे कुचलवा दिया गया। 
  • उनके सरदार मलका की चाकू से खाल उतरवाई गई और घास फूंस भरकर शहर के मुख्य द्वार पर लटका दिया गया। 
  • बरनी अपनी ‘तारीखे फिरोजशाही में लिखता है कि उसने इतना भयंकर दृश्य जितना दिल्ली के द्वार होज-ए-रानी पर देखा पहले कभी नहीं देखा था।
  • सुल्तान का सोचना था कि इतना कठोर दण्ड पाने के बाद मेवाती हमेशा के लिए शांत हो जाएंगे। 
  • लेकिन उसका ऐसा सोचना गलत साबित हुआ। सुल्तान की सेनाओं के वापस लौटते ही मेवातियों ने जुलाई 1260 को फिर विद्रोह कर दिया। 
  • सुल्तान को इस विद्रोह को दबाने के लिए एक बार फिर से बलबन को भेजना पड़ा। 
  • मिनहास के अनुसार बलबन ने 12,000 आदमी 1266 ई० में महमूद की मृत्यु हो गई इसके बाद बलबन सुल्तान बना। 
  • सुल्तान बनते ही बलबन ने मेवात के जंगलों को साफ करवाया क्योंकि इनमें मेवाती युद्ध के बाद छिप जाते थे।
  •  उसके बाद मेवात पर आक्रमण करके एक वर्ष तक मेवातियों को मौत के घाट उतारा जाता रहा। 
  • मेवाती वीरतापूर्वक लड़े। इस युद्ध में सुल्तान के भी एक लाख आदमी मारे गए। 
  • भविष्य में विद्रोह को रोकने व मेवात में स्थाई शांति स्थापित करने के लिए गोपालगीर में बलबन ने एक दुर्ग का निर्माण करवाया तथा वहां पर स्थाई सेना की एक टुकड़ी रख छोड़ी। 
  • अनेक स्थानों पर थाने स्थापित किए गए, बलबन इनका निरीक्षण खुद करता था। लेकिन मेवात में यह शांति अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकी। बलबन के शासन के अंतिम दिनों में मेवाती फिर विद्रोही हो गए। 
  • सर वुलजले हेग के अनुसार “इन कठोर उपायों के बावजूद भी बलबन मेवात को पूरी तरह शांत नहीं कर सका। “
  • खिलजी सुल्तानों के काल में मेवात में विद्रोह हुए या नहीं साक्ष्यों के अभाव में कुछ नहीं कहा जा सकता। 
  • लेकिन फिरोज तुगलक के समय में मेवातियों ने अपने नेता समर पाल के नेतत्व में विद्रोह कर दिया।  यह कोटका का जमींदार था।
  • फिरोज ने इससे बात करके इससे इस्लाम धर्म ग्रहण करवा लिया। अब इसे बहादुर नादिर के नाम से जाना जाने लगा।
  •  इसके इस्लाम कबूल करने से दो प्रभाव पड़े तो काफी मेवाती जनता ने उसका अनुशरण करते हुए इस्लाम धर्म कबूल कर लिया। दूसरे मेवात क्षेत्र में शांति स्थापित हो गई।
  • धर्म परिवर्तन के बाद बहादुर नादिर ने दिल्ली के दरबार में अपनी जगह बना ली तथा वहां की राजनीति में सक्रिय भाग लेने लगा।
  • समसामयिक इतिहासकार कहते हैं कि जब ग्यासुदीन द्वितीय सुल्तान दिल्ली का शासक बना तो बहादुर नादिर उसका विश्वासपात्र था। 
  • जब अबुबक्र ग्यासुदीन की हत्या करके दिल्ली का सुल्तान बना तो बहादुर नादिर उसका भी क पा पात्र बन गया। 
  • लेकिन अबुबक्र एक कमजोर शासक सिद्ध हुआ और वह दरबारियों के विद्रोह के भय से भाग कर बहादुर नादिर के पास कोटला चला गया। पीछे से नसीरूदीन मुहमद शाह सुल्तान बना। उसने अबुबक़ पर आक्रमण किया।
  •  बहादुर नादिर ने इसे अपने ऊपर आक्रमण समझा और सुल्तान का डटकर मुकाबला किया। लेकिन जीत सुल्तान की ही हुई। 
  • बहादुर नादिर को पकड़कर दिल्ली लाया गया। लेकिन सुल्तान ने मेवातियों की प्रतिक्रिया के भय से उसे रिहा कर दिया।
  • रिहाई के थोड़े दिन बाद बहादुर नादिर ने अपनी शक्ति को मजबूत करके स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। उसने दूर-दूर तक लूटमार शुरू कर दी। यहां तक कि दिल्ली के कई भागों को भी लूटा।
  •  अगस्त 1393 ई० में सुल्तान ने बहादुर नादिर को फिर पराजित किया और राजधानी लौट आया। यहां आकर वह बीमार पड़ गया। सुल्तान की बिमारी की खबर पाकर बहादुर नादिर ने फिर से कई प्रदेशों को लूटना शुरू कर दिया। 
  • अतः सुल्तान ने बीमारी की हालत में ही मेवात पर आक्रमण कर दिया । बहादुर नादिर पराजित हुआ और कोटला के दुर्ग पर आक्रमण करके विजय प्राप्त कर ली। लेकिन बहादुर नादिर ने वहां से निकलकर ‘जहर’ नामक पर्वतों में जा छिपा।
  •  सुल्तान वहां से लौट आया और कुछ दिन बाद उसकी मत्यु हो गई ।
  • 1394-95 ई० में एक बार फिर दिल्ली के दरबार की राजनीति षड़यंत्रों से भर गई। अलाउदीन के बाद नसीरूदीन महमुद दिल्ली का सुल्तान बन गए। 
  • बहादुर नादिर ने नसीरूदीन का पक्ष लिया। सुल्तान ने बहादुर नादिर को दिल्ली के दरबार का रक्षक बना दिया। 
  • यहां वह तीन वर्ष तक रहा। लेकिन तैमूर के आक्रमण के समय कोटला वापस लौट आया।
  • तैमूर ने नादिर की स्थिति को जानकर उसे आदरपूर्वक अपने पास बुलवाया और मेवात पर आक्रमण नहीं किया। 
  • सैयद सुल्तान मुबारक शाह (1421-34) के समय में मेवातियों ने एक बार फिर विद्रोह कर दिया। सुल्तान ने 1424 ई० उनके खिलाफ एक सेना भेजी। मेवाती ने अपने घर और जमीनों को छोड़कर एक बार फिर ‘जहर’ नामक पर्वत पर भाग गए इससे मजबूर होकर शाही सेनाओं को वापस लौटना पड़ा। 
  • मुबारक शाह के मेवातियों के खिलाफ 1425, 1427, 1428 ई० में कई बार सेना भेजनी पड़ी। बहादुर नादिर के पोतों जालु व कद्दु ने शाही सेनाओं का डटकर मुकाबला किया। 
  • इस युद्ध में कदु पकड़ा गया और 1427 ई० में उसको मौत के घाट उतार दिया गया। लेकिन बादली जालु ने मुबारक के खिलाफ संघर्ष जारी रखा ।
  • 1451 ई० में मेवातियों ने अपने नेता अहमद खां मेवाती के नेतत्व में एक बार फिर विद्रोह कर दिया 
  • बहलोल लोधी ने उनके खिलाफ एक सेना भेजी मेवाती वीरता से लड़े। लेकिन अंत में अहमद खां को आत्मसमर्पण करना पड़ा और उसने चाचा मुबारक खां को दिल्ली के दरबार में भेजा तथा उसे अपना एक परगना भी छोड़ना पड़ा। 
  • जबकि बाकी की जमीन उसी के पास रहने दी गई लेकिन जब बहलोल लोधी का पता चला कि अहमदखां उसके खिलाफ जौनपुर के हुसैनशाह की सहायता कर रहा है। तो उसकी सारी संपत्ति छीन ली गई तथा उसे अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया।
  • सिकंदर लोधी के समय में आलम खां मेवाती दिल्ली के दरबार का एक महत्वपूर्ण अमीर था । इब्राहिम लोधी के समय में हसन खां मेवाती ने अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया। 
  • उसने एक बड़े राज्य की स्थापना की जिसमें मेवात अर्थात गुडगांवा, फरीदाबाद, नारनौल कन्नौज और अलवर के आसपास के क्षेत्र शामिल थे। उसके पास 10,000 मेवातियों की एक सेना थी तथा दिल्ली के सुल्तान तथा पड़ोस के राजदूत सरदारों के साथ उसकी मित्रता थी।
  •  हसन खां दिल्ली सल्तनत का हमेशा वफादार बना रहा और पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोधी का साथ दिया।

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