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ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरुद्ध प्रमुख विद्रोह

ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरुद्ध प्रमुख विद्रोह | Major revolt against the East India Company

वर्ष  विद्रोह नेतृत्वकर्ता
1814 जीन्द का विद्रोह प्रताप सिंह
1818 छछरौली का विद्रोह जोधा सिंह
1818 रानियां का विद्रोह जाबित खाँ
1824 किसान विद्रोह सूरजमल
1835 बनावली विद्रोह गुलाब सिंह
1843 कैथल विद्रोह गुलाब सिंह, साहिब कौर
1845 लाडवा का विद्रोह अजित सिंह

संक्षिप्त विवरण 

रानिया का विद्रोह

  • 1810 ई. में हिसार जिले की रानिया रियासत के शासक जाबित खाँ ने अग्रेजों की अधीनता स्वीकार ली, किन्तु कम्पनी के आदेशों की अवहेलना करता था।
  • परिणामस्वरूप कम्पनी ने रानिया के युद्ध में जाबित खाँ को परास्त कर इस रियासत को अपने अधिकार में ले लिया।

छछरौली की बगावत

  • अम्बाला क्षेत्र में 63 वर्ग किमी में विस्तृत इस छोटी रियासत का शासक बुंगेल सिंह था।
  • 1809 ई. में उसकी मृत्योपरान्त कोई उत्तराधिकारी न होने के कारण कलसिया रियासत के राजा जोधसिंह ने उस पर अधिकार कर लिया।
  • अंग्रेजी सेना के आने पर जोधसिंह पीछे हट गया तथा यह रियासत राम कौर को मिल गई।
  • 1818 ई. में पुनः जोधसिंह ने छछरौली पर अधिकार कर लिया तथा राम कौर के खराब प्रशासन के कारण जनता ने भी रानी का साथ नहीं दिया।
  • अंग्रेजों ने जोधसिंह के विरुद्ध सेना भेजकर छछरौली को अपने राज्य में मिला लिया।

रोहतक, गुड़गाँव व हिसार में कृषक विद्रोह

  • मालगुजारी वसूलने के कठोर तरीके के कारण हरियाणा के किसानों में व्यापक असन्तोष था।
  • 1824 ई. में बर्मा युद्ध में अंग्रेजों की हार की चर्चा सुनकर किसानों ने विद्रोह करना शुरू कर दिया। * सरकारी खजानों तथा बैंकों में लूटमार शुरू हो गई। भिवानी के लोग सेना के वाहनों पर हमला करने लगे।
  • सूरजमल ने विद्रोहियों को एकत्र कर लड़ाई शुरू कर दी, किन्तु प्रशिक्षित अंग्रेजी सेना ने किसानों को परास्त कर उन पर अत्याचार किए।

जीन्द विद्रोह

  • 1818 ई. में जीन्द रियासत के शासक भगतसिंह को लकवा मारने पर उन्होंने अपने पुत्र प्रताप सिंह को कार्यकारी शासक नियुक्त किया, किन्तु अंग्रेजों ने रानी सौद्राही को प्रशासक बना दिया।
  • 23 जून, 1814 को प्रताप सिंह ने रानी को मारकर अपनी सरकार बना ली। 
  •  अंग्रेजी सेना के आने पर प्रताप सिंह बलावली दुर्ग भाग गया, जो रणजीत सिंह के क्षेत्र में आता था।
  • 1819 ई. में भगतसिंह की मृत्यु के बाद फतेहसिंह जीन्द का राजा बना तथा 1822 ई. में उसकी मृत्यु के बाद उसका 11 वर्षीय पुत्र संगत सिंह उत्तराधिकारी हुआ।

बनावली विद्रोह

  • 1835 ई. में संगत सिंह की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने उनके सारे क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
  • बनावली की जनता ने प्रताप सिंह के बहनोई गुलाब सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया।
  • अंग्रेजों ने सेना भेजकर उन्हें पराजित कर दिया तथा गुलाब सिंह मारा गया।

लाडवा विद्रोह

  • हरियाणा के उत्तरी भाग में स्थित लाडवा रियासत की नींव 1763 ई. में सरदार सिंह ने रखी थी। 
  • 1803 ई. में लाडवा रियासत का राजा गुरुदत्त सिंह बना, जो ब्रिटिश नीतियों के विरुद्ध था। गुरुदत्त सिंह का उत्तराधिकारी उसका पुत्र अजीत सिंह हुआ।
  • लाडवा शासक अजीत सिंह अंग्रेजों का सख्त विरोधी था । अतः कोई आधार न मिलने के बावजूद 1845 ई. में उसे विद्रोही घोषित कर सहारनपुर जेल में डाल दिया गया।
  • 1845-46 ई. में अजीत सिंह ने जेल से भागकर अंग्रेजों से अनेक युद्ध किए तथा अंग्रेज सेनापति हेनरी स्मिथ को गिरफ्तार कर लिया, किन्तु इसी दौरान उसकी मृत्यु हो गई और अंग्रेजों द्वारा उसकी रियासत को कम्पनी के शासन में मिला लिया गया।

कैथल विद्रोह

  • उत्तरी हरियाणा में स्थित इस रियासत का स्थान महत्त्वपूर्ण माना जाता है। 1763 ई. में गुरुबख्श सिंह ने इस रियासत की नींव रखी थी। 
  • गुरुबख्श सिंह के उत्तराधिकारी देसासिंह ने कैथल को अफगानों के आक्रमण से मुक्त करवाया था, परन्तु देसासिंह के पुत्र लालसिंह ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर ली। 
  • लालसिंह के निधन के पश्चात् उसका पुत्र प्रताप सिंह (1818 ई. में) गद्दी पर बैठा । 
  • तत्पश्चात् 1823 ई. में प्रताप सिंह के भाई उदयसिंह ने कैथल रियासत की बागडोर सँभाली।
  • 1843 ई. में कैथल के शासक उदयसिंह की मृत्यु होने पर उसके निःसन्तान होने के कारण अनली रियासत के शासक गुलाब सिंह ने कैथल पर अपना अधिकार जताया, किन्तु अंग्रेज सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया।
  • उदय सिंह की रानी, सूरज कौर तथा माँ साहिबा कौर रियासत को सुरक्षित रखना चाहती थी। 23 मार्च, 1843 को अंग्रेजों ने रियासत को ईस्ट इण्डिया कम्पनी को सौंपने का आदेश दिया। 
  • 10 अप्रैल, 1843 को अंग्रेजी सेना ने अधिकारी क्लार्क के नेतृत्व में कैथल को घेर लिया। रानी साहिबा कौर तथा सूरज कौर ने जनता के साथ मिलकर अंग्रेजों से संघर्ष किया। 
  • 16 अप्रैल, 1843 को जीन्द, पटियाला और नाभा के शासकों की सहायता से अंग्रेजों ने कैथल पर अधिकार कर लिया।

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