जलवायु परिवर्तन | Climate Change | Haryana CET

जलवायु परिवर्तन (Climate Change)

  • जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख भूमण्डलीय पर्यावरणीय और विकासात्मक समस्या है। यद्यपि जलवायु परिवर्तन के सभी संभावित परिणामों को समझना बाकी है, और यह अब स्थापित या निश्चित हो चुका है, कि इससे विपरीत प्रभाव पड़ते हैं, जैसे कि मौसम, बाढ़ और सूखा पड़ने की घटनाएँ बार-बार या लगातार होना और समुद्रीय स्तर के बढ़ने से समुद्री तटों का छोटा होना तथा जलवायु में अत्यधिक परिवर्तनों के कारण भारी हानि होती है।
  • अत्यधिक जलवायु परिवर्तन अथवा जलवायु परिवर्तन से असमानता में वृद्धि होती है – जिसमें गरीब, महिलाएँ, वृद्ध और बहुत ही छोटे बच्चे इससे प्रभावित होते हैं, विशेषकर अल्पविकसित और विकासशील क्षेत्रों के सम्बन्ध में इसका प्रकोप होता है और इससे भी अधिक वहाँ पर नुकसान होता है, जहाँ पर जलवायु बहुत ही संवेदनशील होती है खासकर कृषि, मछली पालन और वानिकी क्षेत्रों में लोगों की आजीविका इन्हीं संसाधनों पर निर्भर होती है, जिसके कारण उन लोगों की अनुकूलन क्षमता बहुत ही सीमित होती है।
  • इसके साथ ही अधिकतर गरीबी से प्रभावित क्षेत्रों में संसाधनों और आवश्यक सेवाओं का स्तर बहुत ही सीमित होता है, जिसके कारण जलवायु परिवर्तन के विषय और विपरीत प्रभावों का सामना करना, उनसे निपटने की क्षमता भी बहुत ही सीमित हो जाती है।
  • IPCC, 2014 की पाँचवी मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार खोजों से पता लगा है, कि वायुमण्डल और समुद्र में तापन की वृद्धि होने के कारण भूमण्डलीय जल प्रवाह चक्र में परिवर्तन हुआ है और हिम तथा बर्फ के पिघलने से भूमण्डलीय समुद्र स्तर में वृद्धि देखी गई है और कुछ जलवायु में अत्यधिक परिवर्तन हुआ है।
  • ग्रीन हाऊस गैस कार्बन डाइ आक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) तथा नाइट्रोक्साइड (N2O) के कारण वायुमण्डलीय केन्द्रीयकरण में सन् 1750 से मानव की गतिविधियों या मानवीय हस्तक्षेप के कारण अत्यधिक वृद्धि हुई है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्राकृतिक और मानव व्यवस्था के संवेदनशील कारणों के बीच गहरे अन्तर सम्बन्ध है ।
  • जो हमें इनका सामना करने के लिए अथवा इनसे बचाव करने के लिए खोज करने, कार्यनीतियाँ बनाने और प्रति उत्तर में उपाय करने के लिए आह्वान करते हैं।
  • इसके साथ संवेदनशील क्षेत्रों, नियोजकों, प्राकृतिक व्यवस्था को सिद्ध करती है तथा विकास / पर्यावरण शब्दकोश शब्दावली और विश्वव्यापी कार्रवाई का एक अटूट हिस्सा बनते जा रहे हैं और इसके हस्तक्षेप में निरंतर वृद्धि हो रही है अर्थात् जलवायु को ठीक करने के लिए विश्वव्यापी कार्रवाई करने की नितांत आवश्यकता है।
  • मौसम वायुमण्डल की दिन-प्रतिदिन की स्थिति होती है और अव्यवस्थित (Chaotic ), अगतिकीय (non-linear) सक्रिय ( dynamical) व्यवस्था होती है।
  • मूलतः मौसम सूर्य के कारण बनता है, जोकि तारामण्डल को ताप देता है और किसी अन्य ध्रुव की अपेक्षा, भूमध्यरेखा पर अधिक बलाघात करता है। सूर्य की गरमी के साथ एक तारामण्डल या नक्षत्र की चक्रावत पर अपना प्रभाव छोड़ती है जो प्रायः जल से ढका हुआ होता है और इससे जो उत्पन्न होता है, उसे हम मौसम कहते हैं।
  • इस तरह से मौसम का अर्थ पृथ्वी की धरातल के निकट वायुमण्डल की गुणवत्ता में जो दिन-प्रतिदिन परिवर्तन होता है, उसे हम वायुमण्डल कहते हैं क्योंकि अति गरम वायु बढ़ने लगती है और ठंडी वायु घटने लगती है और तारामण्डल के तापमान में बदलाव आता है, जिसके कारण व्यापक रूप से वायु में गतिशीलता उत्पन्न होती है।
  • हम वायु में इस गतिशीलता को महसूस करते हैं और यह और अधिक सक्रिय गतिवान होती है क्योंकि पृथ्वी पर चक्रावृति में परिवर्तन होता है जबकि सतह जल के स्थिर वा पीकरण बादल का निर्माण करते हैं और अन्ततः संकट उत्पन्न होने की संभावना बन जाती है।
  • “जलवायु” (Climate) शब्द के व्यापक रूप से अनेक अर्थ होते हैं। हम में से बहुत से लोग जलवायु को तापमान के रूप में लेते हैं, यद्यपि इसमें वर्षा का होना और आर्द्रता भी हमारे दिमाग में होती है।
  • जब हम जलवायु परिवर्तन पर विचार करते हैं, उस समय प्रायः हिम नदी काल के समय निर्धारण के बारे में सोचने लगते हैं। अभी हाल के दिनों में लोगों में यह चिन्ता बढ़ने लगी है कि वायुमण्डल की जलवायु में कार्बन डाइ आक्साइड बढ़ने और अन्य ग्रीन हाऊस गैसों के बढ़ने का अल्पकालिक प्रभाव हो सकता है, जो थोड़े समय के लिए ही क्यों न हो किन्तु महत्वपूर्ण है।
  • जलवायु में औसत तापमान, संकर की मात्रा, सूर्य के प्रकाश के दिन और अन्य विभिन्न तत्व सम्मिलित होते हैं। हालाँकि पृथ्वी के पर्यावरण में होने वाले परिवर्तन भी जलवायु को परिवर्तित करने में समर्थ हो सकते हैं।
  • जलवायु का आकलन या निर्धारण एक व्यापक स्तर के ढाँचे और बल के द्वारा किया जाता सूर्य से पृथ्वी की स्थिति 93 मिलियन (Million) मील की दूरी पर स्थित पृथ्वी की स्थिति के साथ वास्तविक स्थान से की जाती है, जो भूमध्य रेखा के आसपास उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र पर सौर विकिरण की मात्रा पर जीवन बने रहने की स्थिति पर निर्भर करता है, जहाँ पर सूर्य बहुत ही निकट होता है।
  • पृथ्वी अपनी धुरी पर वहाँ चक्र लगाती है जहाँ पर भूमध्य रेखा के आसपास उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र पर अत्यधिक ताप की मात्रा होती है।
  • इस तरह से सूर्य के प्रकाश का विषम वितरण के परिणामस्वरूप और वायुमण्डल स्थित तापमान तथा विश्व की समुद्री धारा और वायु संचालन इत्यादि जलवायु को प्रभावित करते हैं।

जलवायु परिवर्तन का स्वरूप

जलवायु परिवर्तन

  • जलवायु परिवर्तन का अर्थ है जलवायु की स्थिति में परिवर्तन होना, इस तरह के परिवर्तन में लम्बा समय लगता है, कभी-कभी तो यह अवधि दशकों में होती है, अथवा इससे लम्बी अवधि भी हो सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आंतरिक प्रक्रिया अथवा बाहरी दबाव के कारण होती है, जैसे कि सौर चक्र का बलाघात, ज्वालामुखी का विस्फुटन और वायुमण्डल या प्रयोग में आने वाली भूमि की संरचना में सतत् उद्भेदन सम्बन्ध विस्फोटन ।
  • वायुमण्डल को संयुक्त राष्ट्र संरचना सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन (UN Framework Convention on Climate Change – UNFCCC) ने यह परिभाषा दी है कि जलवायु परिवर्तन सीधे तौर पर या परोक्ष रूप से मानव गतिविधियों के कारण होता है, जो भूमण्डलीय वायुमण्डल की संरचना को बदलती है और कुछ समय की अवधि के बाद प्राकृतिक जलवायु में भिन्नता लाती है ऐसा तुलनात्मक काल अवधि में देखा जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन, स्थिति या व्यवस्था परिवर्तन से सम्बन्धित होता है, जैसे कि तापमान का मौसमी ढाँचा, जोकि लम्बी कालावधि के लिए प्रेक्षण किया जा सकता है।
  • इंटर गवर्नमेंटल पेनल ऑन क्लाइमेंट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change – IPCC) के प्रयोगों में स्पष्ट किया गया है कि समय के साथ जलवायु परिवर्तन एक कालावधि के बाद किसी भी परिवर्तन से सम्बन्धित होता है जो मौसम प्राकृतिक विविध प्रक्रियाओं के कारण हो सकता है अथवा मानव की क्रियाविधियों व कार्यकलापों के कारण होता है।

भूमण्डल पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

  • गत 50 वर्षों से अधिक मानव क्रियाकलाप – विशेषकर जीवाश्म ईंधन का अत्याधिकता से प्रयोग करना या उसको जलाने के कार्यों में अत्यधिक वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप कार्बन डाइ आक्साइड और अन्य ग्रीन हाऊस गैसों में समुचित वृद्धि हुई है, जिसके कारण निम्न वायुमण्डल और भूमण्डलीय जलवायु अपनी अधिक गर्मी और ताप के घेरे में ले लिया गया है तथा जिसने भूमण्डल की जलवायु को प्रभावित किया है ( UNDP, 2006; IPCC, 2013)।
  • इसके साथ ही पिछले 130 वर्षों के दौरान पूरा विश्व लगभग 0.85° सेंटीग्रेड की ओर अधिक गरम हुआ है, उसका तापमान बढ़ा है। पिछले 3 दशकों के अंदर सन् 1850 से लेकर इस अवधि में सबसे अधिक तापमान में वृद्धि हुई है।
  • समुद्री स्तर में बेहताशा वृद्धि हुई, ग्लेशियरर्स (Glaciers) में विखण्डन, वर्षा पैटर्न में परिवर्तन और अत्यधिक मौसम की परिघटनाओं में अधिक सघनता और बार-बार बदलाव की स्थिति बन गई है।
  • मानव का स्वास्थ्य जलवायु और मौसम के बुरे प्रभावों से प्रभावित हो रहा है। जलवायु और जलवायु में विविधताओं में परिवर्तन, विशेषकर अत्यधिक मौसम में बदलाव, पर्यावरण को प्रभावित करते हैं जो कि हमें स्वच्छ वायु, खाद्य, जल, आश्रय और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन अन्य प्राकृतिक और मानव निर्मित दबावों को एक साथ प्रभावित करता है, मानव स्वास्थ्य को जोखिमपूर्ण बनाता है और अनेक अच्छे तरीकों या साधनों को हानि पहुँचाने का कार्य करता है।
  • इनमें से कुछ स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव, विश्व के सभी हिस्सों तथा हिमालय सहित सभी क्षेत्रों में हम पहले से ही सामना करते आ रहे हैं। जलवायु के प्रभावों के हमने जो आँकड़े दिए हैं, यह स्पष्ट है कि आने वाली शताब्दी में और अधिक वृद्धि के साथ प्रायोजित होने वाले हैं, जो वास्तव में मौजूदा स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने की चुनौती में वृद्धि करेंगे और स्वास्थ्य और अधिक घातक तत्वों की उत्पत्ति निश्चित रूप से और भयंकर स्थिति में होगी । 

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