हरियाणा में ब्रिटिश राज
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हरियाणा में ब्रिटिश राज (British Raj in Haryana)
- उत्तर मुगलकालीन शासकों की अयोग्यता एवं दिल्ली में साम्राज्यों के उथल-पुथल के कारण मराठों ने दिल्ली एवं हरियाणा के क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था।
- 1789 ई. से 1794 ई. तक दिल्ली एवं हरियाणा पर महादजी सिन्धिया का एकाधिकार रहा।
- 1794 ई. में महादजी सिन्धिया की मृत्यु के पश्चात् हरियाणा पर दौलतराव सिन्धिया का अधिकार स्थापित हो गया।
- 30 सितम्बर, 1803 को दौलतराव सिन्धिया ने हरियाणा को ‘सर्जीअन’ गाँव (अलवर जिला) की सन्धि के तहत् ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया को सौंप दिया।
- हरियाणा पर अधिकार स्थापित करने के बाद ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इसे बंगाल प्रेसीडेन्सी में शामिल करके इसके कुछ क्षेत्रों पर प्रत्यक्ष शासन स्थापित किया तथा कुछ क्षेत्रों को हरियाणा के प्रभावशाली राजाओं एवं सरदारों को सौंप दिया।
- फर्रुखनगर के नवाब तथा बल्लभगढ़ के राजा उम्मेद सिंह को उनकी पुरानी जागीरें दे दी गईं।
- फैज तलब खाँ को पटौदी का परगना, अहमद बख्श खाँ को लोहारु तथा ” फिरोजपुर झिरका के परगने और राव तेजसिंह को रेवाड़ी परगना में इस्तेमरारी जागीर के 87 गाँव दिए गए।
- इसके साथ ही मुर्तजा खाँ को होडल का परगना तथा मुहम्मद अली को पलवल का परगना दिया गया।
- रोहतक, महम, बेरी, हिसार, हाँसी, अग्रोहा, बरवाला, जमालपुर और तोशाम परगना बम्बू खाँ को सुपुर्द किया गया, परन्तु बम्बू खाँ को जनविद्रोह का सामना करना पड़ा।
- जनविद्रोह के कारण ये परगने अहमद बख्श को दे दिए गए, परन्तु जन-विद्रोह के कारण इसे भी जागीर छोड़नी पड़ी।
- तत्पश्चात् इन परगनों का प्रशासक अब्दुल समद खाँ को नियुक्त किया गया, परन्तु जन- विद्रोह शान्त नहीं हुआ, अन्ततः इन परगनों की जिम्मेदारी नवाब मुहम्मद अली खाँ को सौंप दी गई।
- इसके अतिरिक्त महालवाड़ी व्यवस्था, आर्थिक तथा सामाजिक रूप से हरियाणा के शोषण की नीति चलती रही।
- उत्तरी हरियाणा में स्थित लाडवा के शासक गुरुदत्त सिंह और थानेसर के शासक भंगा सिंह ने सिख शासकों का संघ बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
- ब्रिटिश कमाण्डर कर्नल बर्न और सिख संघों के मध्य भीषण संघर्ष हुआ, इस संघर्ष में बूड़िया के शासक शेर सिंह की मृत्यु हो गई थी।
- करनाल में 20 अप्रैल, 1805 को गुरुदत्त सिंह और कर्नल बर्न के मध्य लड़े गए युद्ध में गुरुदत्त सिंह के पराजित होने के बाद सिख संघों की शक्तियाँ समाप्त हो गईं।
- दक्षिणी हरियाणा में भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह होते रहे। लोगों ने कर देना भी बन्द कर दिया था। गुरिल्ला युद्ध के कारण अंग्रेजों को इस क्षेत्र में विद्रोह को दबाने में काफी समय लगा।
- मेवात क्षेत्र पर नियन्त्रण स्थापित करने में अंग्रेजों को 7 वर्ष लग गए। इस विद्रोह को शान्त करने के बाद दक्षिणी हरियाणा पर पूरी तरह कम्पनी प्रशासन का नियन्त्रण स्थापित हो गया।
- • हरियाणा के पश्चिमी भाग में सिरसा तथा फतेहाबाद के भट्टी शासकों ने भी अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया।
- 1809 ई. में अंग्रेज अधिकारी कर्नल एडम्स ने भीषण संघर्ष में दोनों शासकों को आत्मसमर्पण करने के लिए विवश कर दिया।
- संघर्ष के पश्चात् जाबिता खाँ को सिरसा एवं रानिया की जागीर लौटा दी गई, परन्तु बहादुर खाँ से रियासत छीन ली गई।
प्रशासनिक ढांचा
1819 ई. में कम्पनी ने प्रशासनिक ढाँचे में संशोधन कर रेजीडेण्ट नामक अधिकारी को राजनीतिक शक्ति प्रदान की। साथ ही कम्पनी द्वारा अधिग्रहित भाग को तीन क्षेत्रों में विभाजित कर दिया
(i) उत्तरी क्षेत्र रोहतक, हिसार, पानीपत तथा सोनीपत इस क्षेत्र में रखे गए।
(ii) केन्द्रीय क्षेत्र दिल्ली को इस क्षेत्र में रखा गया।
(iii) दक्षिणी क्षेत्र रेवाड़ी, गुड़गाँव, होडल, पलवल तथा मेवात इस क्षेत्र में रखे गए।
1833-34 ई. में ब्रिटिश शासन द्वारा हरियाणा को उत्तर-पश्चिमी प्रान्त का अंग बना दिया गया तथा इसका केन्द्र आगरा को बनाया गया।
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा छीनी गई रियासतें
रियासत का नाम | छीनने की छीनने का कारण | वर्ष |
छछरौली | रानी राम कौर की अयोग्यता, जोधा सिंह का हस्तक्षेप | 1818 |
रानियां | 1818 नवाब जाबित खाँ द्वारा विद्रोह | 1818 |
अम्बाला | राजा गुरबख्श सिंह की विधवा सरदारनी दया कौर की मृत्यु | 1824 |
रादौर | राजा दयाल सिंह की विधवा सरदारनी इन्द्र कौर की मृत्यु | 1828 |
दियालगढ़ (दया कौर का हिस्सा) | 1829 राजा भगवान सिंह की विधवा माई दया कौर की मृत्यु | 1829 |
थानेसर (भागल सिंह का 2/5 भाग ) | राजा जमियत सिंह की बिना उत्तराधिकारी के मृत्यु | 1832 |
कैथल | भाई उदय सिंह की बिना उत्तराधिकारी के मृत्यु | 1834 |
बुफोल | राजा हरनाम सिंह की बिना उत्तराधिकारी के मृत्यु | 1838 |
चलौड़ी | सरदार भागल सिंह की विधवा सरदारनी राम कौर की मृत्यु | 1844 |
लाडवा | राजा अजीत सिंह द्वारा विद्रोह | 1845 |
थानेसर (भागल सिंह का 3/5 भाग ) | राजा फतेह सिंह की विधवा रानी चाँद कौर की मृत्यु | 1850 |
हलाहर | राजा फतेह सिंह की बिना उत्तराधिकारी के मृत्यु | 1850 |
दियालगढ़ (माई सुखन का एक हिस्सा) | राजा भगवान सिंह की विधवा माई सुखन की मृत्यु | 1851 |
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