तराईन की लड़ाईयां

तराईन की लड़ाईयां

तराईन की लड़ाईयां:

  • अफगानिस्तान में महमूद के उत्तराधिकारी कमजोर तथा अयोग्य साबित हुए इस स्थिति का लाभ उठा कर कई सुबेदार स्वतंत्र हो गए। 
  • इनमें गौर प्रदेश का सुबेदार भी शामिल है। भारत में भी हांसी, थानेसर, सिंध आदि पर दिल्ली के हिंदू राजाओं का कब्जा हो गया। 
  • इतने में 1173 ई० में गौरी वंश के एक शासक ने गजनी पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया और गजनी वंश का अंतिम शासक भागकर लाहौर आ गया।
  •  जब मौहम्मद गौरी गौर देश की गद्दी पर बैठा तो उसके लिए गजनी वंश के नाममात्र के अंतिम शासक को पराजित करने के लिए लाहौर पर आक्रमण करना जरूरी समझा। 
  • अतः 1180 ई० में मौहम्मद गौरी ने खुसरो मलिक से लाहौर छीनकर गजनी पर अधिकार कर लिया। अब मोहम्मद गौरी के राज्य की सीमाएं पृथ्वीराज के राज्य की सीमाओं से मिल गई। अतः दोनों के बीच युद्ध होना अनिवार्य ही था ।

युद्ध के कारण

भारतीय राजाओं में आपस में फूट:

  • भारतीय राजाओं में परस्पर शत्रुता थी । पृथ्वीराज को दिल्ली मिल जाने से जयचंद उससे नाराज था और वह पृथ्वीराज का पतन देखना चाहता था। 
  • मंदोर का राजा भी पृथ्वीराज  को नीचा दिखाना चाहता था। क्योंकि पृथ्वीराज से उसकी पुत्री से विवाह तय करने पर भी विवाह करने से इंकार कर दिया था।
  • अतः दोनों के बीच घोर शत्रुता हो गई। दोनों में युद्ध हुआ और मंदोर का राजा पराजित हुआ। 
  • इस विजय से पृथ्वीराज  को सात करोड़ रुपये का खजाना मिला जिससे अन्य हिंदू राजा भी पृथ्वीराज से चिढ़ने लगे ।
  •  केवल चित्तौड़ का राजा समर सिंह, जो पृथ्वीराज का बहनोई था, पृथ्वीराज का एकमात्र समर्थक था। 
  • कर्नल टाड भारत की इस राजनीतिक फूट का वर्णन करते हुए कहते हैं कि “जयचंद ने कई एक छोटे राजाओं को मिलाकर, अनहिल वाड़ा, पद्यम, मंदोर और धार के राजाओं के सहयोग से एक योजना तैयार की और इस योजना के अनुसार मौहम्मद गौरी द्वारा पृथ्वीराज का सर्वनाश करना चाहता था।
  • मौहम्मद गौरी को यह सब ज्ञात था और वह भारत की फूट से लाभ उठाकर अपना राज्य विस्तार करना चाहता था। अतः पृथ्वीराज और मौहम्मद गौरी के युद्ध का पहला कारण भारतीय  राजाओं की आपसी फूट थी ।

भारत की आर्थिक समद्धिः 

  • महमूद गजनी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया था । वह भारत से अथाह धन लूटकर गजनी ले गया। मौहम्मद गौरी भी गजनी की तरह से भारत से धन लूटना चाहता था ।

राजपूतों और मुसलमानों के बीच पुरानी शत्रुताः 

  • गौरी शंकर ओझा के अनुसार राजपूतों और मुसलमानों के बीच पुरानी शत्रुता थी। 
  • उनके अनुसार लाहौर के गजनी वंश के शासक लूटपाट के लिए राजपूतों पर चढ़ाईयां करते रहते थे। 
  • इस प्रकार की लड़ाई में साभर के राजा दुर्लभराय द्वितीय मुसलमानों के साथ लड़ाई में मारा गया था। 
  • अजमेर बसाने वाले अजयराज ने मुसलमानों को परास्त किया था। 
  • बीमल देव ने दिल्ली और हांसी को मुसलमानों से स्वतंत्र करा लिया था। इनसे स्पष्ट है कि राजपूतों और मुसलमानों में पुरानी शत्रुता थी जो एक निर्णायक युद्ध के बिना समाप्त नहीं हो सकती थी ।

धार्मिक कट्टरताः

  •  ए० एल० श्रीवास्तव के अनुसार पृथ्वीराज और गौरी के बीच संघर्ष का मूल कारण धार्मिक कट्टरता थी। उनके अनुसार गौरी भारत में इस्लाम का प्रचार करना तथा मूर्ति पूजा का अंत करना अपना कर्तव्य समझता था। गौरी के इस कार्य में पृथ्वीराज सबसे बड़ी बाधा थी।
  • दूसरी तरफ पृथ्वीराज भी अपने आप को हिंदू धर्म और संस्कति का संरक्षक मानता था । इस प्रकार दो विरोधी विचारधाराओं की टक्कर स्वाभाविक थी ।

गौरी की भारत में मुस्लिम साम्राज्य स्थापित करने की इच्छाः 

  • गौरी के भारत पर आक्रमण के समय समस्त मध्य एशिया पर मुसलमानों का साम्राज्य स्थापित हो गया था। भारत में भी मुसलमानों ने लाहौर को जीत लिया था।
  •  अन्य मुसलमानों की भांति गौरी भी भारत में मुसलमान शासन स्थापित कर धर्म के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट करना चाहता था। 
  • तराईन की दूसरी लड़ाई से पहले उसने पांच विजय की थी लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं था। 
  • वह चाहता था कि मध्य एशिया की भांति भारत भी एक इस्लामिक देश बन जाए । 
  • यह दिल्ली व अजमेर पर स्थायी अधिकार होने पर ही संभव हो सकता था । अतः युद्ध अनिवार्य था।

गौर देश की राजनीतिः 

  • गौरी को यह भय था कि गजनी के शासकों के वंशज कभी भी पुनः अपना राज्य स्थापित करने की चेष्टा कर सकते हैं और उसे अपने राज्य से हाथ धोना पड़ सकता है। 
  • ऐसी स्थिति में भारत विजय कर ली जाती है तो कम से कम उसका राज्य बना रहता है। इसलिए भारत पर आक्रमण करना उसकी राजनीतिक आवश्यकता थी ।

पृथ्वीराज की भूलः 

  • पृथ्वीराज यदि चाहता तो अपने पड़ोसी राज्यों की सहायता से उत्तर पश्चिम के आक्रमणकारियों को रोक सकता था। लेकिन वह अपनी शक्ति पड़ोसी राज्यों के साथ लड़ने में लगा हुआ था । 
  • उसे चाहिए था कि जब गौरी ने मुलतान और भटिंडा का किला जीता तभी उस पर आक्रमण कर उसे भारत से खदेड़ देता। लेकिन जब गौरी ने गुजरात पर आक्रमण कर दिया तब भी पृथ्वीराज चुप बैठा रहा । 
  • यह उसकी सबसे बड़ी भूल थी। उसे चाहिए था कि आपसी वैमनस्य को भुलाकर गुजरात की मदद करके गौरी को आगे बढ़ने से रोक देता। यदि गुजरात युद्ध में मौहम्मद गौरी को हरा दिया जाता तो वह पृथ्वीराज पर कभी आक्रमण न करता

जयचंद का षडयंत्र:

  •  जयचंद जो कन्नौज का राजा था, कि पृथ्वीराज से शत्रुता थी। जयचंद ने कई पड़ोसी राज्यों के परामर्श से एक योजना तैयार की और इस योजना के अनुसार गौरी के द्वारा वह पृथ्वीराज का सर्वनाश करना चाहता था। 
  • पृथ्वीराज को भी इस योजना का पता चल गया था कि जयचंद के निमंत्रण पर मौहम्मद गौरी एक विशाल सेना लेकर दिल्ली पर आक्रमण कर रहा है।
  •  लेकिन फिर भी पृथ्वीराज गौरी से लड़ने की बजाय अनहीलवाड़ा के राजा से लड़ने गया। इस प्रकार जयचंद ने पृथ्वीराज के विरुद्ध षडयंत्र रचकर उसका ध्यान ही नहीं बंटाया वरन् गौरी की हिम्मत को और भी बढ़ा दिया ।
  •  अतः युद्ध का तत्कालीन और अत्यंत महत्वपूर्ण कारण जयचंद की योजना थी ।

पृथ्वीराज और मोहम्मद गौरी के बीच में तराईन के मैदान में दो युद्ध लड़ गए।

तराईन का प्रथम युद्ध (1191 ई०)

  • पश्चिमी पंजाब पर अधिकार हो जाने से गौरी के राज्य की सीमाएं पृथ्वीराज के राज्य से मिल गई। 1191 ई० में गौरी ने सरहिंद पर अधिकार जमा लिया। 
  • पृथ्वीराज भी उसका सामना करने के लिए चल पड़ा। दोनों सेनाओं का सामना तराईन के मैदान में हुआ। राजपूत सेना के सामने गौरी की सेना के हाथ पैर फूल गए। 
  • इस युद्ध में गौरी बुरी तरह से घायल हो गया। वह घोड़े पर से गिरने ही वाला था कि एक मुसलमान सिपाही ने रोक लिया और घोड़े को युद्ध भूमि से भगा ले गया। 
  • गौरी के भागते ही मुस्लिम सेना घबरा गई तथा भाग खड़ी हुई। गौरी के भाग जाने पर पृथ्वीराज ने सरहिंद पर फिर कब्जा कर लिया।

तराईन का दूसरा युद्ध (1192 ई०) : 

  • तराईन के प्रथम युद्ध में पराजित होने के पश्चात मौहम्मद गौरी की सेना अपने घायल सुल्तान को लेकर गजनी पहुंच गई। 
  • सुल्तान अपनी पराजय से बहुत दुखी था। उसने अपने उन अमीरों को कठोर दण्ड दिया जिन्होंने तनिक भी लापरवाही की थी। उसने अपनी पराजय का बदला लेने के उद्देश्य से युद्ध की तैयारियां आरंभ कर दी। 
  • उसने अपनी सेना को ठीक प्रकार से संगठित व अनुशासित किया । दूसरी तरफ विजय के तत्काल बाद पथ्वीराज ने सेना संगठन की और कोई ध्यान नहीं दिया और भोग विलास में लगा रहा।
  • एक वर्ष के पश्चात 1192 ई० में गौरी ने एक बार फिर प थ्वीराज के राज्य की और बढ़ा। दोनों सेनाएं एक बार फिर तराईन के मैदान में आमने सामने आ डटी । युद्ध में गौरी ने चालाकी से काम लिया। 
  • उसे राजपूतों की वीरता का ज्ञान था। उसने अपनी सेना को पांच भागों में विभाजित किया और युद्ध के थोड़ी देर बाद चार भागों को पीछे भागने का आदेश दिया। पांचवां भाग एक तरफ सुरक्षित था।
  •  जब राजपूतों ने गौरी की वापस भागती हुई सेना की पीछा किया तो थोड़ी दूर जाकर गौरी की सेना ने एक बार फिर मुड़कर आक्रमण कर दिया। 
  • अभी राजपूत सैनिक संभले भी नहीं थे कि गौरी की सेना के पांचवे सुरक्षित भाग ने पीछे से उन पर आक्रमण कर दिया। राजपूत सैनिक चारों तरफ से घिर कर हताश हो गए। 
  • गोविंद राज भी युद्ध में मारा गया। टाड महोदय के अनुसार तीन दिन भीषण मारकाट हुई। तीसरे दिन राजपूत सरदार समर सिंह और उसके पुत्र कल्याण सिंह भी युद्ध में मारे गए।
  •  देखते-देखते अनेक राजपूत तलवारों की भेंट चढ़ गए। युद्ध में पथ्वीराज पराजित हुआ। कुछ विद्वान मानते है कि गौरी ने पथ्वीराज को पकड़ लिया और मार डाला। जबकि अन्य विद्वानों का विचार है कि उसे अंधा कर दिया गया और साथ में गौर ले गया और वहां उसका वध कर दिया गया।

तराइन युद्ध के प्रभाव

  • भारत से चाहमान शासकों के शासन का अंत हुआ तथा देश में मुस्लिम राज्य की स्थापना हुई।
  • मुस्लिम राज्य की स्थापना के बाद भारत में सर्वाधिक क्षति बौद्ध धर्म की हुई। हिन्दू मंदिरों का विध्वंस किया गया तथा इस्लाम का प्रसार हुआ।

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