1857 ई. की क्रान्ति के बाद हरियाणा की देशी रियासतें
लोहारु रियासत
- वर्ष 1935 में लोहारु रियासत के शासक अमीनुद्दीन अहमद के कुशासन के खिलाफ प्रबल विरोध प्रदर्शन किया गया।
- 8 अगस्त, 1935 में नवाब अमीरुद्दीन ने सिंहाणी नामक गाँव में शान्तिपूर्ण जुलूस प्रदर्शन पर गोलियाँ चलवा दीं, जिसमें अनेक लोग मारे गए।
- इस घटना के पश्चात् रियासत में प्रजामण्डल की स्थापना कर कुशासन को चुनौती दी गई। इ
- स कार्य में सूबेदार दिलसुख, चौधरी मोहर सिंह, पण्डित सत्यव्रत, चौधरी चन्दगीराम ठाकुर भगवन्त सिंह, श्री नत्थूराम की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही।
- व्यापक विरोध प्रदर्शन के बीच नवाब और आन्दोलनकारियों के मध्य समझौता हुआ।
- स्वतन्त्रता के पश्चात् वर्ष 1947 में लोहारु रियासत का हिसार जिले में विलय हो गया।
जीन्द रियासत
- जीन्द रियासत के शासक सरूप सिंह की 1864 ई. में मृत्यु हो गई। इसके पश्चात् उनका उत्तराधिकारी रघुवीर सिंह बना।
- 1887 ई. में रघुवीर सिंह के निधन के बाद अल्पायु में उसका पोता रणवीर सिंह राजा बना।
- वर्ष 1911 में रणवीर सिंह को महाराजा की उपाधि दी गई। रणवीर सिंह की नीतियों से जनता प्रसन्न नहीं थी।
- वर्ष 1927 में जब रियासतों की आजादी के लिए प्रजामण्डल गठित किया गया, तो महाराजा रणवीर सिंह की नीतियों के विरुद्ध जीन्द रियासत में भी नरवाना में जीन्द राज्य प्रजामण्डल की स्थापना की गई।
पटौदी रियासत
- पटौदी रियासत के अन्तिम शासक नवाब इफ्तिखार अली खान थे। ये क्रिकेट, हॉकी तथा बिलियर्ड्स के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भी थे।
- नवाब इफ्तिखार अली खान को खेलों की दुनिया में टाइगर के उपनाम से जाना जाता था। नवाब मंसूर अली खान पटौदी उनके उत्तराधिकारी थे। ये भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट के खिलाड़ी थे।
- वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान पटौदी रियासत की जनता ने गौरीशंकर वैद्य, पं. बाबूदयाल शर्मा, ठाकुर राम सिंह, नन्दकिशोर के नेतृत्व में प्रजामण्डल का निर्माण कर यहाँ के नवाब इफ्तिखार अली खान के विरुद्ध बगावत कर दी।
- नवाब ने प्रजामण्डल की माँगों को सख्ती से दबाने की कोशिश की तथा गौरीशंकर वैद्य को कारावास में डाल दिया।
- इससे जनता में नवाब के प्रति नाराजगी और बढ़ गई।
- अतः नवाब को प्रजामण्डल के साथ समझौता करना पड़ा, जिसके अन्तर्गत बन्दी बनाए गए लोगों को रिहा किया गया।
- आजादी के बाद पटौदी रियासत का गुरुग्राम जिले में विलय कर दिया गया।
दुजाना रियासत
- अंग्रेजों एवं दुजाना रियासत के नवाबों के अत्याचारों से बचने के लिए दुजाना में भी प्रजामण्डल की स्थापना की गई।
- दुजाना प्रजामण्डल का केन्द्र कोसली के समीप नाहड़ था।
- इसके प्रमुख राव देवकरण सिंह एवं सचिव सरदार सिंह थे।
- प्रजामण्डल के नेताओं में पं. हरिराम राव नेकीराम, पं. ताराचन्द्र, महाशय रामजीलाल, हकीम मंगतूराम प्रमुख थे, इन्होंने ‘कर न दो’ आन्दोलन चलाया।
- दुजाना रियासत के नवाब मुहम्मद इक्तदार अली खाँ द्वारा अनेक प्रयासों के बावजूद आन्दोलन का दमन नहीं किया जा सका।
- जनता के आन्दोलन के समक्ष नवाब को अन्ततः झुकना पड़ा।
- बन्दी बनाए गए सभी नेताओं को छोड़ दिया गया। मार्च, 1948 में दुजाना रियासत का रोहतक जिले में विलय कर दिया गया।
पटियाला रियासत का नारनौल क्षेत्र
- पटियाला के सिख शासकों ने अन्य रियासत के शासकों के समान विलासितापूर्ण जीवन को अधिक महत्त्व दिया।
- नारनौल की जनता पटियाला शासकों के इस व्यवहार से क्षुब्ध हो चुकी थी।
- जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1945 को नारनौल में प्रजामण्डल का गठन किया गया।
- राव माधो सिंह, राम किशोर, अयोध्या प्रसाद, कमला देवी, रामचरणचन्द मित्तल, श्रीराम कौशिक एवं मातादीन इसके प्रमुख नेता थे।
- पटियाला नरेश ने पूरी कोशिश की कि इस आन्दोलन को कुचल दिया जाए, परन्तु सफलता नहीं मिली।
- स्वतन्त्रता के पश्चात् नारनौल सहित पटियाला रियासत का भारत संघ में विलय कर दिया गया।
नाभा रियासत का बावल, कनीना तथा अटेली क्षेत्र
- प्रताप सिंह नाभा रियासत के अन्तिम महाराजा थे प्रताप सिंह ने लोगों पर भारी कर लगाए तथा स्वयं विलासितापूर्वक जीवन व्यतीत करता रहा। प्रताप सिंह के इस व्यवहार से जनता क्षुब्ध थी।
- प्रताप सिंह के विरुद्ध वर्ष 1946 में प्रजामण्डल का गठन किया गया। प्रजामण्डल के नेतृत्व में आन्दोलन संचालित किया गया।
- नेतृत्वकर्ताओं का नारा था- ‘नाभा वाले क्षेत्रों को छोड़ो’। प्रताप सिंह आन्दोलनकारियों के साथ समझौता करने पर विवश हो गए।
- स्वतन्त्रता के पश्चात् वर्ष 1948 में नाभा रियासत का भारतीय संघ में विलय कर दिया गया और इसे पटियाला के नाम से जाना गया।
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